Header Ads Widget

बगीया का माली Sudha Tailang Story

 बगीया का माली

सुधा तैलंग द्वारा बगीया का माली कहाँनी में दशरथ प्रसाद के घर में आज जश्न का माहोल नजर आ रहा था. तीनो बेटे बड़े जोश से घर के पिछवाड़े में बने आँगन में रसोईया से खाना बनवा रहे थे. कहने का मेन्यु तीनों बहुओ ने मिलकर तैयार किया था. कचौड़ी, इमरती, गुलाब, जामुन बूंदी या रायता, मैथी की पुड़ी के साथ न जाने कितने व्यंजन, जो दशरथ प्रसाद को बेहद पसंद थे.



व्यंजनों की महक पुरे घर में फैल रही थी पर कैसी विडम्बना है कि जीते जी तीन-तीन बेटों के होते हुए जो आदमी एक कप चाय और दो रोटी के लिए बहुओं का मोहताज था, उसके मरने के बाद बहू बेटे दिल खोल कर खर्च कर रहे है, तरह-तरह के पकवान बनवा रहे है, वो भी उसी की पसंद के तेहरवी के भोज में भारी भीड़ थी. आस-पास के लोगों रिश्तेदारों व परिचितों के अलावा दशरथ प्रसाद के कुछ खास दोस्तों को भी बेटो ने खाने पर बुलाया था. खाना खाने के बाद सभी के मुह से वाह वाही निकल रही थी. सभी कह रहे थे कि देखों तीनो बेटों ने महगाई के दौर में भी कितना खर्च किया है.


मैं बचपन से ही दशरथ का लंगोटियां यार रहा हूँ. ऐसे में जीवन के हर दुःख सुख हमने साथ ही बांटे. तभी बड़ा बेटा राम मेरे पास आकर बोला. पाय लागू शेखर चाचा जी, कैसा लगा आज का खाना? कोई कमी तो नहीं रही? सब कुछ बाबूजी की ही पसंद का बना है.


कचौड़ी का टुकड़ा मेरे गले में ही फंस गया और मैंने न चाहते हुए भी कड़वा सच उगल ही दिया, हा बेटा, जीते जी तो दशरथ को अपनी पसंद का खाना मिल नहीं पाया पर अब मारने के बाद जरुर मिला है. आज उसकी आत्मा जरुर तृप्त होकर अपने बेटों को आशीर्वाद दे रही होगी.


ये सुनते ही राम शमिन्दा होते हुए चुपचाप वहाँ से चल गया और यह बात लगता है कि आस-पास बैठे भोजन के रसिकों को अच्छी नहीं लगी.


यह युवक बोला, यह बुजुर्ग पीढ़ी तो हर दम युवा पीढ़ी के पीछे हाथ धोकर पड़ी रहती है. हम बेटे जिन्दगी भर चाहे कितनी उनकी ही सेवा करे पर मिलेगी बदनामी ही ये बूढ़े जीवन भर अपनी कमाई दबा कर रखते है. मजाल है कि हमें दे दे. तभी दूसरा बोला, देखो तीनों भाइयों ने बाप की बीमारी के इलाज में भी कितना खर्च किया है. आज भी देखों सभी पकवान शुद्ध देशी घी ने बनवाये है. ऐसे बेटे तो भाग्यशाली आदमी को ही मिलते है.


मुझ से यह बात हजम नहीं हुई मैं बीच में ही बोल पड़ा, “हां बेटा” दशरथ तो सचमुच भाग्यशाली था. तभी तो उसके इतने आज्ञाकारी आदर्श बेटे हुए. तीनो बेटों की खातिर दशरथ ने अपनी पूरी जवानी निछावर कर दी. उसकी पत्नी कौसल्या तो तीनो बेटों को उसकी गौद में छौड़ कर चल बसी. शायद तुम्हे पता भी नहीं होगा. उस समय बड़ा बेटा दस साल का, बीच का लक्ष्मण छह साल का, सबसे छोटा भरत केवल चार साल का था. दशरथ ने नौकरी के साथ-साथ एक आया, माँ पिता व दोस्त का फर्ज निभाया. बेटों को पढ़ा लिखा कर ऊँचे पद तक पहुँचाया. मेरी बाते लगता है. पास बैठे युवकों को गवारा नहीं हुई, बीच में एक ही बोल पड़ा, ये तो सभी माँ बाप करते है. “अंकल” तभी पास में बैठे युवकों ने उसको इशारा करके चुप करा दिया. मैं चाह कर भी खाना निगल नहीं पा रहा था. मैं उठकर दरवाजे के बाहर खडीं दशरथ की बहुओं के पास गया और बोला बेटी तुम लोगों ने बहुत अच्छा इंतजाम किया है.


छोटी बहू ने रूआसी होकर कहा क्या करे चाचाजी, बाबाजी तो चले गए, हमारा तो सहारा ही चला गया. आखरी समय तो वो हमारे पास ही थे. बुजुर्गों से घर में कितनी रौनक रहती है. अब तो आप ही हमारे बाबूजी की जगह ले सकते हो. समय समय पर अपना आशीर्वाद देने जरुर आइयेगा. हां बेटी जरुर आऊंगा. यह कहते हुए मैं वहाँ से चल पड़ा. घर आकर निढाल सा पड़ गया. तभी बहु बोली बाबूजी आप कब लौट आये, पता ही नहीं चला, कैसा रहा अंकल की तेरहवी का कार्यक्रम बेटा बहुत बढ़िया, लजीज व्यंजन, तरह तरह के पकवान तीनो बेटों ने कुछ भी कमी नहीं रखी. खाक कमी नहीं रखी! ऐसे बेटे बहुओं को भी उनकी करनी का फल जरुर जायेगा.


ईश्वर सब देखता है. बेटी ऐसा करों मेरे लिए एक गरमा-गरम अदरक वाली चाय तो बना दों. सिर दर्द हो रहा है. आज अपने दोस्त दशरथ की याद बेहद सता रही है.

मैं टीवी खोल देती हूँ. जब तक आप टीवी देखें मन बदल जायेगा. तब तक मैं आपके लिए गरमा-गरम चाय बनाकर लाती हूँ. चाय पीने से मेरा सिर दर्द हल्का हुआ.

तभी पोता बंटी बैट फेंकते हुए बोला, दादू मैं आपका सिर दबा दूँ. मम्मा कह रही है, दादू का सिर दर्द हो रहा है. बंटी अब ठीक हूँ. तू जा अभी थक गया होगा. खेल कर आया है. आज तेरी टीम जीती या हारी?

दादू मैं जिस टीम का केप्टन हूँ. भला वो टीम भी कभी हार सकती हैं? शाबास बेटा! पर इसी तरह पढाई में भी अव्वल आते रहना. इस बार मैंने  बहुत अच्छा सा ईनाम रखा है तेरे पास होने पर. दादू ज्यादा लालच मत दों. मैं तो वैसे भी हर साल क्लास में first आता हूँ.

आखिर पोता किसका है? तुम्हारा दादू भी हर क्लास में अव्वल आता था. हा बाबूजी सच में आपके ऊपर ही गया है बंटी. दीप ने अंदर आते हुए कहा. आज हम शाम की फिल्म का शो देखने जा रहे है बाबूजी.

बेटा तुम लोग ही चले जाओ, मैं क्या करूँगा? मैंने उसे टालने की कोशिश करते हुए कहा. बाबूजी बहुत अच्छी अंग्रेजी फिल्म है. आपके जरुर पसंद आएगी. बहु मीरा ने बीच में ही आदेश सुना दिया. मीरा बेटी, तुम्हारी बात भी कभी मैं भला टाल सकता हूँ

कार में रात को लौटते समय पिक्चर के बारे में बातें करते हुए मुझे कहीं शून्य में खोया देखकर दीप ने मुझे टोका, बाबूजी लगता है कि आप का मन कही और है, क्या बात है? बेटा क्या बताऊँ. मैं आज तक अपने दोस्त दशरथ को नहीं भूल पा रहा हूँ मन करता है कि उसके बेटों को अच्छा सबक सिखा दू.

बाबूजी हम कौन होते है किसी के पारिवारिक मामले में दखल देने वाले! आप अपनी सेहत की चिंता करे. वरना ब्लड प्रेशर बढ़ जायेगा. बेटा जिसके तुम जैसे बेटे बहू हो उसे ब्लड प्रेशर क्या, कोई भी बीमारी नहीं हो सकती.

बाबूजी ऐसी बाते कह कर हमें छोटा मत करे. मा की मौत के बाद आपने ही तो मुझे और रेखा को मा बाप का प्यार देकर पढ़ाया लिखाया, योग्य बनाया. ऐसे संस्कार दिए कि परिवार को जोड़ कर रखे

बेटा दिवाली का त्यौहार आने वाला है. रेखा को फ़ोन कर दो, इस बार भाई – दूज मनाने हम सब ही उसके यहाँ मुंबई जायेंगे. मैंने फ्लाईट की टिकटें बुक भी कर ली है


बाबूजी आपने बिना बताये ही हमारी टिकटें कब बुक करा दी? मेरा कहना टालना मत. मुंबई से हम शिर्डी भी चलेंगे. साईं बाबा के दर्शन करने. जब तू छोटा था, तब तेरी माँ ने मन्नत मांगी थी. तब बरसों पहले हम शिर्डी गए थे. तभी मीरा ख़ुशी से चहकते हुई बोल पड़ी सच बाबूजी हम मुंबई चल रहे है? मेरी भी बहुत इच्छा थी, रेखा दीदी के घर जाने की, हेलो रेखा हम सब इस बार भाई दूज पर तुम्हारे घर ही पहुँच रहे है. बाबूजी ने फ्लाईट की टिकिट बुक कर दी है.

दीप ने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया. दीप भैया, यह तो बहुत ख़ुशी की बात है. मैं आपके स्वागत की तैयारी अभी से शुरु करती हूँ. रेखा की आवाज में जोश और ख़ुशी साफ़ झलक रही थी.


देर रात तक बंटी मेरे पास लेटकर कहानी सुनता रहा. लेटे लेटे शेखर सोचने लगे. काश बुढ़ापे में, रिटायटमेंट के बाद सब अपने परिवार के साथ इसी प्रकार मिल जुल कर ख़ुशी से अपना आखरी समय बिताए तो जीवन कितना आनंदमय खुशनुमा हो सकता है. अपनी बगिया की बैलों को, पौधो को इस तरह सीधे कि वो माली को मीठे फल दे. बगिया की बैलों को, पौधों को इस तरह सींचे कि वो माली को मीठे फल दे. बगिया का माली ही चाहे तो अपनी फुलवारी को हरा भरा रख सकता है. सोचते – सोचते उनकी न जाने कब आँखे लग गई, पता ही नहीं चला. चिड़ियों की चहचाहट से उनकी आँखे खुली तो भौर हो चुकी थी.


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ